नासा द्वारा 12 सितंबर, 2013 को यह स्पष्ट किया गया है कि, 'वॉयजर-1 अंतरिक्षयान लगभग एक वर्ष पूर्व 25 अगस्त, 2012 को ही हीलियोपॉज (सूर्य के प्रभाव वाली सबसे बाहरी परत) से बाहर निकल चुका था। नासा के द्वारा इसे महत्वपूर्ण सूचना के रूप में हाल ही में इसलिए प्रेषित किया गया है क्योंकि इस यान के सौरमंडलीय सीमा से बाहर निकले लगभग एक वर्ष से अधिक समय हो चुका है परंतु वैज्ञानिक मानकों के आधार पर अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी थी।
नासा के अनुसार वॉयजर-1 अधिकतम वर्ष 2025 तक ही सक्रिय रहेगा क्योंकि तब तक इसमें लगे परमाणु संयंत्र काम करना बंद कर देंगे। वॉयजर-1 की वर्तमान गति 45 किमी. प्रति सेकंड है तथा सूर्य जैसे किसी अन्य नजदीकी तारे तक पहुँचने में उसे लगभग 40 हजार वर्ष लगेंगे।
722 किग्रा. वजनी यह अंतरिक्ष यान प्लूटोनियम ईंधन से चलने वाला अंतरिक्ष यान है। इसके प्लूटोनियम रिएक्टर से इसमें लगे 20 वॉट के ट्रांसमीटर्स को ऊर्जा प्राप्त होती है। यह यान सूर्य से करीब 18.51 अरब किमी. दूर पहुँच गया है तथा इसके द्वारा भेजे गये रेडियो सिग्नलों को पृथ्वी तक पहुँचने में 17 घंटों का लंबा समय लगता है।
यह यान सौरमंडल के चारों ओर बिखरे तप्त प्लाज्मा बुलबुलों के क्षेत्र से भी बाहर निकल चुका है। उल्लेखनीय है कि तप्त प्लाज्मा बुलबुले हमारे सौरमंडल तथा इसके काफी बाहर तक फैला हुआ गर्म गैसों का एक गोला है। इससे बाहर निकलने के पश्चात् वॉयजर-1 यान का सूर्य तथा सौरमंडल से कोई संबंध नहीं हर गया है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सौरमंडल एवं उसके बाहर अंतरिक्षीय गतिविधियों, विशेषकर पृथ्वी के अतिरिक्त जीवन की खोज के उद्देश्य से वर्ष 1977 में एक अभियान प्रारंभ किया था, जिसे वॉयजर कार्यफ्रम नाम दिया गया था।
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